Sunday, September 9, 2007

journey

तत्व ज्ञान से ही आत्म दर्शन संभव है
तत्व बोध ही आत्म दर्शन का मार्ग है
तत्व ज्ञान हेतु मानव शरीर एक सुगम साधन है
मानव शरीर में मन एक दिव्य आस्था को प्राप्त कर निज सुख पा सकता है

सजग प्रश्न___
आत्मा क्या है
शरीर क्या है
माया क्या है
जीवन यात्रा क्या है
मन क्या है
सुख व् दुःख क्या है
सुख व् दुःख जीव को कैसे व्यथित कर देते है
राग व् द्वेष क्या है स्मृति क्या है
जीवन क्या है मृत्यु क्या है
मृत्यु उपरांत क्या व् जीवन का आदि क्या
अनुभव क्या है भाव क्या है इन दोनों का संयोजक कोन है
संकल्प क्या है ज्ञान क्या है बोध क्या है
लोक परलोक क्या है
विश्व की परिधि व् सीमा क्या है
जीव व् ब्रह्मा का सत्य क्या है
जीवन की मूल भूत परिभाषा क्या है
कर्म क्या है सिद्धि क्या है
मोक्ष का सत्य व् मूल कहाँ है

जीवन यात्रा के इन सभी विषय का बोध तत्व ज्ञान के होता है जो मानव के लिए अति दुर्लभ व् सहज सुगम है

दर्शन

एक दीपक जल रहा है वही  जीवन की संज्ञा का निरूपण करता है
यथपि यह भौतिक साधनो का विषय है तब  पर भी यह तत्व भेद का निरूपण करता है
दीपक की लो ही जीवन की ज्योत है जो भौतिक स्वरुप बाती व् तेल से प्रकाशित है जब की प्रकाशक कोई और
भौतिकता जो अवधि आधीन है समय पर ज्योत को पूरा कर देती है पर वह जोत यहाँ के भौतिक परिदृश्य में लुप्त हो गयी पर इसका अस्तित्व अमर है जो अनुकूल भौतिकता पर पुनः प्रगट होगी

प्रकाशक ---- परमपिता परमात्मा
भौतिकता ----माया दर्शन
माया ----परमात्मा की अद्रितीय शक्ति
दीपक----जीवन
जीवन का सत्य ----आत्मा
आत्मा ----परमात्मा का एक अंश


आत्म सत्य - परमात्मा के अलग स्वयं की कामना-स्वयं के स्वरुप की इच्छा-स्वयं के अस्तित्व की परिकाष्ठा

परमात्म सत्य -
परमात्मा स्वयं में सत्य की परिपूर्ण परिभाषा है
परमात्मा स्वयं को प्राप्त व् स्वयं में स्वयं सिद्ध व् स्वयम से स्वयं गतिमय
परमात्मा एक अदृश्य सत्य जो सर्वाधिक प्रभावित है
परमातम आत्मा व् माया का मूल स्त्रोत व् प्रेषित बिंदु है
परमात्मा अति शूक्ष्म व् मणि व् वाणी के परे  का सत्य है
परमात्मा एक दिव्या पुंज है जो परिभाषा के सीमा से अनंत की दूरी पर स्थित है
परमात्मा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का कारण व् करणाय है
परमात्मा समस्त भौतिकता का सूत्र धर है पर भौतिकता से भिन्न
परमात्मा सर्व व्यापी, सर्व मय  व् सर्व उरालय है तब पर भी जीवन में परमात्म तत्व बोध सहज संभव नहीं

परमात्मा के पांच नियत कर्म है
सृष्टि
स्थिति
संहार
तिरोभाव
अनुग्रह

ब्रह्माण्ड------
ब्रह्माण्ड परमात्मा की माया का एक विदित स्वरुप है जो लौकिक है
ब्रह्माण्ड अनंत लोको की एक असीमित परिथि है
ब्रह्माण्ड एक दर्शन का विषय है जहा चक्षु से अधिक ज्ञान की संज्ञा है
ब्रह्माण्ड की सत्ता में माया व् आत्मा का सत्य ही प्रेषित है यधपि यह दोनों परमात्मा के सत्य के अधीन है तब पर भी यह परमात्मा के दर्शन में आत्मा व् माया की भौतिकता का समावेश है



माया---
परमात्मा के अद्रितिये शक्ति को ही माया के रूप में जाना जाता है
माया का ब्रह्माण्ड से अलग कोई रूप नहीं
माया का ब्रह्माण्ड से अलग कोई गति नहीं
माया का आत्मा के प्रति आकर्षण  व् आत्मा तत्व हेतु स्वयं का आकर्षण  ही माया के सत्य का प्रतिपादन है
माया का आत्मा से  बड़ा ही विचित्र प्रेम है जो जीवन के रूप रेखा का सत्य है


आत्मा

माया आत्मा के स्वरुप को अपने रंग से रंग कर उसकी भौतिकता का आनंद लेती है
आत्म का माया के रंगो के प्रति आकषण ही उसके बंधन का कारण है
आत्मा  माया के भेद  से स्वयं को सत्ता आरूढ़ करने के भाव से ही मन को गति दे आत्मा के रंग में रंग जाती है और यहाँ शुरू होती है उसकी जीवन यात्रा जो भौतिक व जीव तत्वों से अनुभूतित पांच भूतो के अधीन हो सुख व् दुःख की अनुभूति को प्रात होती है


आत्म तत्व-----
जीव का सत्य आत्मा है
आत्मा का सत्य परमात्मा
परमात्मा स्वयं में सत्य की परिपूर्ण व्याख्या है
पर आत्मा स्वयं से भिन्न स्वयं की तलाश में अपने अहम को संजोय माया में निज स्वरुप  खोजती है
यद्यपि  यह परम नित्य है तब पर भी यह माया के आकर्षण  के वशीभूत है
आत्मा एक अर्ध चेतना है जो पूर्ण होने की इच्छा से  स्वयं को मायामय कर लेती है और अपनी अर्ध चेतना  को समर्पित कर माया के नशे में स्वयं को जीव समझने लगती है और देह धारण कर सुख दुःख की अनुभूति को प्राप्त होती है यही उसके बंधन का मूल सूत्र है

आत्मा सदेव ही मन बुद्धि व् गुणात्मक अहंकार युक्त रहती है
मन बुद्धि व् अहंकार के आत्मा का अस्तित्व माया जनित संसार में विचरत रहता है
माया आत्मा के मन के माध्यम से अपने वशीभूत कर लेती है

यधपि स्वयं आत्मा मन बुद्धि व अहंकार से भिन्न एक दिव्य ज्योत है तब पर भी यह मन को ही प्रकाश मन कर उसी की रह पर चलने में स्वयं की सर्वाधिक  सुरक्षित मानती है

परमात्मा ज्ञान का विषय है और परमातम अंश आत्मा भी  ज्ञान का ही विषय है

आत्म तत्व के सीमा ज्ञान है


ज्ञान ---------------
ज्ञान एक पथ भी है और प्रकाशक भी है 
ज्ञान एक सत्य भी है और सत्य का स्त्रोत भी 
ज्ञान एक विषय भी है और विषय का पूर्ण अलंकार भी 


कर्म से भक्ति 
भक्ति से ज्ञान 
ज्ञान से बैराग्य 
बैराग्य  से सत्य 
और सत्य से प्रेम 
यहाँ प्रेम में स्वयं समर्पण होता है विषय नहीं और यही प्रेम मोक्ष का कारण बनता है 

सांसारिक वस्तुओ का ज्ञान 
भौतिक तत्वों का ज्ञान 
भौतिक विषयो का ज्ञान 

यह सभी ज्ञान जीवन को व्यवहारिक दिशा देते है  जो सुख व् दुःख के संयोजक है 

पर  वह ज्ञान जो जीव को सुख व् दुःख से दूर करता है 
वह ज्ञान जी जीव की चेतना को एक दिव्या रूप देता है 
वह ज्ञान जो जीव के सत्य को एक दिशा देता है 

वह ज्ञान भक्ति प्रेम का ज्ञान है जो जीव के बंधनो को स्वतः ही काटता हुआ उसे सत्य के और ले जाता है 

सत  रज  व् तम  प्रकृति के तीन  गुण  
यह तीन गन जीवन को को बहुत से रूपों से फर देते है 
सत स्वयं में परिपूर्ण होता है 
रज को सत्य की आस होती है 
तम को राज का बल होता है 

प्रकृति के तीन गण 
तीन गुणों पांच महाभूतों की संज्ञा 
पांच महाभूतों के पांच गुण 
पांच गुणों से पंच कर्म इन्द्रियों का प्रादुर्भाव 
पांच कर्म इन्द्रियों  से  पांच ज्ञान युक्तियाँ 
पांच ज्ञान युक्तियों से जुड़ा मन 
मन से जुड़ा अहंकार 
अहंकार से नियत बुद्धि 
मन बुद्धि व् अहंकार से बंधी आत्मा 
आत्मा के परम तत्व से युक्ति जीवन का रूप धारण करती है 
चाहे वह एक मानव 
या  अन्य जीव 
या  भौतिक सूत्र 
या अन्य गति जो मानव कल्पना से पर का सत्य हो               

आकाश तत्व सत गुणी माना गया है 

वायु रजो गुनी 
अग्नि  व् जल सत  व् रजो गण की युक्ति 
पृथ्वी तमो व् रजो गुणों का सार है 


ज्ञान योग क्रिया योग व् भक्ति योग से ओत प्रोत प्रथ्वी जीव को तत्व बोध को और आकर्शित करती है 
चित्त का आत्मा से संयोग ज्ञान का कारण बनता है 
चित्त का भौतिक गुणों में समावेश  ही  क्रिया योग का कारण बनता है 
चित्त का परमात्व तत्व में विलय होना ही भक्ति योग की परम सीमा है 

आत्मा का परमातम तत्व से अलग होना एक विस्मित घटनाक्रम  है  जिसके प्रत्यक्ष वर्णन संभव नहीं 

आत्मा का देह धारण  भी एक विस्मित घटना के तहत होता है  पर यहाँ माया  आत्मा को अपने  अनुरूप देह धारण कराती है 
आत्मा तत्व परमात्मा से भीं होते ही कारन शरीर को प्राप्त होता है और माया उसे शुक्षण दर्शन की और ले जाती है जहा वह शुक्षम दर्शन को सत्य मान प्रकृति जनित देह धारण करता है 

माया से  प्रेम जो वासना संलिप्त होता है और स्वयं की सत्ता का अहंकार आत्मा को जीव रुपी ब्रह्माण्ड की सच्चाई से स्वयं को जोड़ता है 


ब्रह्माण्ड की भौतिकता मानव देव में एक परिपूर्णता संजोये जीव को भरमाती  है 


ब्रह्माण्ड के स्वामित्व की परिकाष्ठा और निज सुख की दूरी ही आत्मा को जीव बनती है 


आत्म ब्रह्मा व् प्रकृति से भिन्न अपने सत्य को खोजते होए माया से प्रेम करने लगता है और यही माया बृह में उसे देह धारण करा देती है  जो स्वयं में एक बंधन है 


देह से कर्म व् कर्म से देह और यही जीव का सत्य हो कर रह जाता है 


पुण्य से लाभ व् पाप से हानि पर दोनों ही बंधन के दाता 


पाप के अधिकाधिक ताप से आत्मा सा मूल सत्य नष्ट हो जाता है और तब वह पूर्ण शरीर संज्ञा से वंचित हो बैक्टीरियल या बहुत ही छोटे शरीर में मता बंधन क्रिया हेतु ही रूप रेती है जहा मूलतः अंकार का वचस्व रहता है 



मानव जीवन यात्रा में १२ प्रकार के पापो से स्वयं को सत्य से मुक्त करने का प्रयास करता है कुछ सांसारिक लाभ के लिए 

यह पाप मन वाणी व् शरीर से किये जाते है 

मन द्वारा किये गए पाप ---

पर नारी कामना 
दुसरो का अनावश्यक अनहित सोचना 
पर धन की कामना 
अधर्म युक्त चिंतन 

वाणी द्वारा किये गए  पाप -----
व्यभिचारी वार्तालाप 
असत्य भाषण 
कठोर बचन  व् पर निंदा 
अहंकार युक्त वाणी 

शरीर द्वारा किये गए पाप -----

हिंसा करना 
भक्ष अभक्ष 
चोरी करना 
असामाजिक व् अनैतिक कार्य करना 

मन वाणी व् शरीर द्वारा किये गए सभी पापो को मन ही रूप देता है 

मन के सत्य का समझाना एक अहम  चाबी है जो सत्य के द्वार को खोलती है 






मन
मन एक गति है जो प्रत्येक जीव को नियत स्वरुप की और ले जाने का कार्य करती है
मन जीव का मूल केंद्र होता जो ह्रदय से बुद्धि के बीच विचरण करता है पर इसके संकल्प में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की संज्ञा व्याप्त रहती है
मन नित्य है मन नूतन है मन विचित्र है जो सभी कल्पनाओ का केंद्र है पर सभी कल्पनाओ से परे
मन के माध्यम से ही जीव जीवन यात्रा को रूप देता है
मन आत्मा का दर्पण भी कहा जा सकता है
मन विधुत तरंगो से अधिक व् सूर्य के किरणे की गति के कही ज्यादा गति से जीवन यात्रा में प्रभावी  रहता है
मन आत्मा का परम निकट सहयोगी है जो माया पर सदा ललाहित रहता है
मन का स्थिर हो असंभव सामान है पर जीव मन की गति को योग साधना से नियत कर सकता है
आत्मा मन की गति से जीवन यापन करती है
मन ही सुख दुःख की अनुभूति का आधार है
मन ही विक्षिप्त संगती का सार है
मन ही आत्म दर्शन का मूल व् मन ही परमात्म सत्य का पुंज है
मन ही जीवन रूपी व् जीवन में सिद्धि स्वरुप फल का आधार है
चंचलता मन का धर्म है इसी कारण यह माया पाश से बंध जाने को विवश है
मन का दमन नहीं हो सकता मन का दाह नहीं हो सकता
मन आत्मा से मूल से प्रगट हो आत्म तत्व में विलय हो आत्मा के मोक्ष का कारण बनता है

माया व् मन दोनों ही मृत्यु रहित है
शरीर मरता है मन नहीं
मन आत्मा का सूचक है
आत्म तत्व की सिद्धि मन से ही है
मन की अवस्थाओ का भेद ही जीवन के सुख दुःख का कारण बनता है

धारण व् ध्यान भी मन के ही विषय है
धारण से देह व् ध्यान से मुक्ति

ज्ञान विज्ञानं सभी मन के विषय है
ज्ञान निज स्वरूप पर आधारित होता है व् विज्ञानं माया रूपेण

यधपि आत्मा से अन्य सभी माया का परिवार है तब पर भी मन बुद्धि व् अहंकार पर भी माया की सत्ता है जो की आत्मा के उपभोग का विषय है

मन संकल्प का परम सेतु है परम साधन है व् संकल्प से ही आत्मा व् माया की गति है
संकल्प से ही विश्व की रचना है संकल्प से ही ब्रह्माण्ड का वचस्व है
संकल्प से ही जीवन की गति व् जीव का साधन है

संकल्प से ही शिव व् शिव की सत्ता है
शिव संकल्प से ही ब्रह्माण्ड  का रूप व् गति है
शिव संकल्प से ही माया की सत्ता व् माया का रूप है
शिव संकल्प से ही जीव की गति व् जीव का सत्य है

शिव माया में संकल्प मन से बढ़कर है
मन वाणी से बढ़कर
वाणी आकाश से अधिक
आकाश वायु से अधिक
वायु तेज से अधिक
तेज जल से अधिक
जल पृथ्वी से अधिक महत्त्व का विषय है जीवन हेतू

माया रूपी संसार में चिट से बढ़कर ध्यान
ध्यान से अधिक समाधी
समाधी से अधिक सत्य

इन तीनो का संयोजक मन-जो आत्मा का अधिस्ठित मंत्र है

अन्न से बल
जल से भाव
वायु से सुख दुःख की संज्ञा

आकाश से स्मृति
स्मृति से आशा
आशा से प्राण यह एक चक्र जीवन के अभिन्न रंग का विषय है

चित्त भावना व् वासना से प्रेरित रहता है यधपि मन का मार्ग है तब पर भी यह आत्मा को अदिकाधिक सम्बोधित करता है

भौतिक अवस्थाए मन को प्रभावित करती है क्यों की यह सदेव भौतिकता से जुड़ा रहता है जीवन में

मन बुद्धि गुणात्मक अहंकार मन के निकटम साथी है

जो संकल्प बोध से माया रचित पांच भूतो से जुड़े रहते है जीवन काल में
व् उन्ही के गुणों से स्वयं को रचते व् विरचते है

आकाश शब्द से प्रेरित है
वायु स्पर्श से
तेज दर्शन से
जल स्वाद से
व् पृथ्वी गंद या सुगन्ध  से प्रेरित रहती है यह गुण मूलतः  माया के है यो विविद स्वरुप में व्यापते है पांच भूतो में

वायू  को प्राणो का अतार्थ आत्मा के वाहक गन माना जाता है

शरीर में वायु पांच प्रारूप में व्याप्त रहती है
प्राण वायु हृदय में
उदान वायु हृदय से मस्तिष्क मार्क में
सामान वायु नाभि कुण्ड में
अपान वायु नाभि से तलवो तक
व्यान वायु सम्पूर्ण शरीर में प्राप्त रही है

वायु का शरीर में विशेष योगदान रहता है व् इसकी सभी क्रियाओ में इसका विशेष महत्व होता है


वायु का वहां आकाश तत्व में होता है
मानव देह में जहा जहा वायु की संज्ञा है वह आकाश का दर्शन भी एक सत्य है
यधपि मानव देह परिपूर्ण आकाश का एक शुक्ष्म दर्पण है
मूलतः आकाश तत्व ह्रदय में सत्तारूढ़ रहता है तब पर भी यह मस्तिस्क को परिपूर्ण रूप से घेरे रहता है
आकाश में समस्त तारा मंडल विविद ग्रह व् सूर्य एवं चन्द्रमा का स्थान वैसे ही हृदय में इन सभी का समावेश है

मानव शरीष रुपी ब्रह्माण्ड में मूलतः इस प्रकार से समझा जाता है की _---
आकाश तत्व मस्तिस्क में स्थित रहता है
तेज तत्व कंधो में स्थित रहता है
वायु तत्व नाभि में
पृथ्वी तत्व घुटनो में व्
जल तत्व पैर के तलवे में स्थित रहता है

देहावसान क्रिया में आत्मा जल व् पृथ्वी तत्व को त्याग कर-तेज से वायु वहां कर आकाश तव में विलीन हो जाती है

आकाश तत्व  यधपि मानव शरीर में अहमं भूमिका निभाता है पर यह शुक्ष्म  व् कारण  शरीर में अधिक सक्रिय रूप से कार्यरत रहता है

आत्मा के वाहन  का मूल स्तंभद आकाश तत्व है जो इसकी मुक्ति तक इसके वहन का सहायक होता है

मन ही मानव को बंधन की युक्ति से संजोता है
मन ही राग द्वेष युक्त हो जीव का मुक्ति मार्ग  को अवरुद्ध कर देता है

जीव आठ बन्दनो से बंधा अपने तीनो शरीर में

प्रकृति बुद्धि गुणात्मक अहंकार व् इन्ही से युक्त पांच तन्मात्राएँ एहि जीव को बांधती है

मन से प्रकृति
प्रकृति से देह
देह से कर्म
कर्म से पुनः देह
और यही चक्र जीव के बंधन का स्वरुप लेता है

जीव का बंधन माया जाल से तो है ही पर यहा मन ही केंद्र है
जब तक मन इन्द्रियों के वशीभूत रहता है बंदन को रूप देता है
मन जब इन्द्रियों को वष में कर लेता है मुक्ति की संज्ञा को प्राप्त  होता है
भौतिकता के अनुररोप वहां करना बंधन है
व् भौतिकता से स्वयं को मुक्त करना मुक्ति है
भौतिकता मन के पीछे चलती है और भौतिकता का दास है



मानव देह -----
पंच भूत जनित मानव देह एक अवधि हेतु ही आत्मा को वाहन के रूप में प्राप्त होती जीवन यात्रा हेतु 
पुष्ट मानव शरीर ही विशुद्ध मन की गति का सहायक भी  माना  जाता है यधपि मन की गति देह स्थिति से सदेव भिन्न ही रहती है 

पुष्ट शरीर हेतु तीन मुख्य धराये प्रथम है 

पुष्ट आहार 
स्वस्थ्य आचार विचार 
नियमित पूर्ण निंद्रा 

विशुद्ध व् नियमित निद्रा मस्तिस्क को बल प्रदान करती है जो हृदय को सुचारू रूप देने में सहायक होता है 

स्वस्थ्य आचार विचार यह मन का परिपूर्ण छेत्र है यहाँ मन का ही साम्राज्य है और मन अधिकतम माया के वशीभूत रहता है 
पुष्ट आहार से मानव शरीर के पंच तत्वों को नियमित करने में मदद मिलती है आहार व् विहार का मानव मन पर विशष प्रभाव होता है विशुद्ध आहार व् स्वाथ्य विहार मानव देह पुष्टि  हेतु परम आवश्यक है 

आहार में छे रासो का वर्णन आया है 
मधुर 
अम्ल 
लवण 
तिक्त
कटु 
कषाय 

यह रस वात -पित्त -कफ को रूप देते है जो मानव शरीर संरचना में अपना योगदान प्रकाशित करते है 

सभी जीव स्वचालित क्रम के निहित देह यापन के सत्य से हो कर गुजरते है 

सभी देह भौतिकता के पैमाने पर स्वचालित स्वरूप में नियति की और बढ़ती है 
देह का भीतरी सत्य सो प्रकाशित किया जा सकता है पर इसका मूल संचालक नहीं 
देह आत्मा का वाहन है 
देह की निरंतर शुद्धि हेतु श्वास प्रणाली स्वमेव कार्यरत रहती है इसी को प्राण दायिनी भी कहा जाता है 
देह शुद्धि का बहुत महत्त्व है 
देह की पुष्टि आहार के अधीन ही नहीं होती यहाँ कई अन्य विषय सहायक होते है तब पर भी पुष्ट संतुलित विशुद्ध  आहार की एपीआई गरिमा है देह पुष्टि हेतु 

मानव देह में ७२ हजार नाडिया होती है जिसमे इड़ा  पिंगला व्  सुषम्ना की गरिमा सर्वाधिक है 
इड़ा में चन्द्र 
पिंगला में सूर्य 
व् सुषम्ना में शिव तत्व निहित रहता है 
सभी नाड़िओ में सभी तत्वों का प्रवाह होता है समय अनुसार व युक्ति अनुसार 

मानव शरीर अन्य जीव देहो से भिन्न साधन जो जैव आत्मा को परमात्म तत्व बोध से अवगत करा ज्ञान सागर की और ले जाने में सक्षम होता है जहा जीव व् ब्रह्म  का मिलान संभव है 


यदपि मानव शरीर होना  ही परम मिलान का मुक्य साधन नहीं है प्रभु कृपा भी परम आवश्यक है 

अधीनता व् व्यधिओ से ग्रस्त मानव जीवन भी अन्य जीवन के सामान ही गति पता है पर यहाँ जीव आगे की गति को सुधार  सकता है 

बहुत ही दुखी जीव पर भगवान स्वयं दया करते है और उसे पुनः उद्धार की युक्ति सुझाते है 


पर जो जीव मनुष्य शरीर पा कर भी जीवन के मूल्य को नहीं समझता है वह अंत में अधिक दुःख को प्रात होता है 


Vedic Trinity
God, soul, and the Matter
God and the Soul
God, the creator-the ultimate truth
Soul, one of the truths of his existence

Matter
The passive agent of the Universe that for a Hidden cause
Atman
Atman_an entity hard to perceive in the scenario of Maya yet can be realized with the truth of self
Indeed, everlasting and indestructible yet suffer in merry with Maya for the mirage of identity
It is beyond the limitations of gross and subtle truth, physical parameters cannot elaborate it at its defined pitch
The existence of Atman is true to believe
Mind and Manas that close associates of Atman separate it from its pristine identity
The body is alloyed physical structure but Atman is unalloyed immortal truth
Atman is peace loving entity that is calm when without subtle form
Atman is neither cause nor effect yet subjected to the pitch of Maya
Atman is knowledge incarnate, during the transition it acquires the body to felicitate self but gets trapped in the net of Maya for long on the truth of karmic bondage
The soul that is not subject to changes yet forced to accept the pitch of condition and environment,
Atman is eternal and omnipresent but due to coverings of Maya, remains lost in the falsehood of misleading identity
Reincarnation recalls the truth of Atman and its karmic assets
Atman is a state of consciousness that devoid of bliss which separates it from its pristine truth God
State of Soul
Though a fractional truth of almighty one yet have the tendency to incline and have passion for
Though immortal by nature but passion to marry Maya makes it mortal and trap in the net of transmigration
Though party to god yet worship Gods to rescue self from the self-esteemed passion
Though a free bird yet inclined to enjoy the taste of ripe and delicious fruits of Maya, the nature
Though far from the range of Karma yet put-forth self on the pitch of karma to prove self among fellow beings
Though formless like free air and infinite sky, yet assume form in the quest of false identity
Though above the horizon of animate and inanimate, yet falls prey to
God-Maya-Soul
Maya is ruled by the God
The soul is ruled by the Maya
Maya is the delusive potency of God,
The soul is fractional truth of God
Maya is aligned with God
The soul is oriented toward Maya
Maya covers the soul
Soul keeps quest of identity in covering Maya rather than self
Maya engaged soul
Soul engaged self in Maya


Soul and the Peace
In the heat of transmigration burning soul ever keep the quest for peace
Though peace is an eternal subject yet not that distant from self
Stage of peace is the state of pause for spirit in the journey for rest to recharge truth for ascending
There is nothing above peace for the soul in the journey
Absence of Peace
The absence of peace leads the spirit to jaws of non-fulfillment that further tighten the ties of Maya to create unrest,

Inner self always motivates man for a peaceful resolution in the journey

The absence of peace enhances the ties of bondage For the soul

Five and sixth
Five Senses and their driver Manasa is the root cause of restlessness in broad-spectrum unless or until providence blesses one for an optimized pitch to carry on with
heaven and hell
Peace is the truth of heaven and Unrest is the path to hell
Spiritual peace
Burning soul in quest of Cool that known in the name of peace ever look at the mercy of God for,
God bestows spiritual peace to the soul for rejuvenation of self
With the truth of spiritual peace, all worldly elements and supernatural elements are put on pause for spirit
Man needs to pray for peace to almighty God, once in a day for must,
Soul and the facets of Maya
Lust, greed, and vanity influence most to Soul in their quest of false identity and the mirage of gratification
Devotion, related karma and Truth pave the path of liberation of the soul from self-created bondage on the pitch of karmic truth

Both ways
Atman and Param-Atman are two faces of the same coin
Indeed Param-Atman ever moves along with Atman yet Atman remains bare from the truth of time and ages for many
With submission when Atman merges its identity with one then it left with only Param-Atman both-ways
Life as Man
For soul life, as a man is more than a sacred sacrifice to offer self for the cause, is a Yajna that bestows the light to ascend from the horizon of Maya
Yajna
It is a soul in the body of a man or woman who has realized the truth of this yajna and performing respective oblation on the pitch of sacrifice built a sphere of fragrance which invite the ultimate one for the cause
Life
Definition of life is not restricted to the mortal frame
Definition of life is relevant to the existence of spirit whichever form it may be
Mortal frame, subtle truth and truth of innermost shell that known as Karana cause the carry of spirit on the pitch of Maya
When Soul enters in a body is called birth here but when departs from known in the death of death but the soul still exists and the journey continues in the name of life

Forms
All living beings are without body_
Before birth and After Death
and manifest in between assuming a form
Soul and the spirituality
Indeed the soul is pure by nature but alloyed by Maya to the tune of its varying colors of life for life
Purity is the essence and fragrance of the soul
Spirituality helps it to regain its lost wealth that purity and truth


Is on Path
The one that identifies himself with the body is in the bondage of Maya and the one that visualizes self above the orbit of Maya is on the path of liberation
Purity and truth For Soul
Purity and the truth help Soul to ascend to the designated charter that fits it for most awaited unison with
light of truth
It is the light of the truth that enlightens the glory of the soul
In the light of mundane existence, the spirit is subjected to act on the patch of karma but the light of truth is subject that directly relates to the purity of the spirit that for a cause
Soul and its attaché
Manas, Intellect, and Ego ever associate the spirit till it liberates for the defined cause
The mind never dies being the party to intellect yet the Soul suffers memory loss at varying intervals of changeover and within singular truth
Mind most behaves on the pitch of condition and environment, with the requisite atmosphere it acts to help the spirit to reach self and untie the knots of Maya
Comparison
The soul cannot be compared with the pitch of the material world or the truth of Maya yet Air and ether may impact the subject in depth
Soul and the death
Though the soul never dies yet death makes it feel like at every change over especially when it is from a human profile
Though it can never be isolated but in gross mode, it isolates spirit from transit identity is the cause of pain at the death
Death can never be a blessing for anyone except for a few that rare of rarest saintly souls
Death poses a new front of challenges that matter to the spirit in the journey
Death imposes detachment from the attachés that once and for all
Though zest of new feeling follows along with yet shadow cast onto soul for a while till it regains the requisite form
Indeed God moves all along but to feel so it needs essential truth which truly helps spirit at the changeover
Virtues deeds act as true saints that move along in true spirit to help Atman
Spirit of self-sacrifice in the journey makes the passage easy for anyone to reach at the safe shore

Departed Souls
One needs to realize the bare fact that relates to, pains experienced by the departed souls are intensified by the sufferings and grief expressed by those who are connected with here on the planet, it never helps the departed one but to felicitate the departure one needs to pray to God that for a cause to help the departed soul
Indeed Virtues and enlightened souls here can help there to the departed one
Though appears myth but it works, a respective oblation to gratify the departed soul
Suffering for anyone either here or there is the state of mind or Manasa that remains along with, respective oblations with prayer and submission truly acts for
Atman and the other species
Atman in other species on this planet lack true knowledge and perception skill but man can track them both

It is considered as if the human profile is concluding subject to completing the Yajna of the journey
To know
Most of the religious observations that are stipulated in ancient literature are meant to purify the self,
The theory of purification is infinite yet man can track the available condition that in the true spirit
The one that who do not carry essential truth along with in other world is bound to face tough challenges that are born of ignorance
But the one with a past of virtues life of discrimination, dispassion with faith, and submission paves it for the self

To know
Walking in the dark or unknown region creates fear for anyone though potency may differ with the truth of self
Truth itself is a light and it ever remains in close proximity to the soul
Fear of death is one among the chain that is based on the theory of light and dark, indeed association plays a vital role yet essential truth graduate the mind to perceive the conditional truth at the time of changeover
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To Know
Desire may be the root cause for spirits to reincarnate
Without desire, one cannot sustain the truth of time and ages
But the dark face of desire leads one to transmigration
And the enlightening face of desire makes it ascend for the soul
The whole creation is based on desire yet desire binds one with
It is for individuals to choose from either unison with the ultimate one or the Maya
Quotes from ancient literature
Weapons cannot cut the soul, and fire cannot burn it, it is far above the limitations that the tools of the Maya
Musk and the deer
As a deer roams here and there in search of Musk, unaware of the truth that he ever carries musk in his naval so is the case of Man in the world of Maya.

Most essential truth untoAtman is all along with yet man wanders for
Road Map
On the Road map of Maya, the Soul is bound to act and proceed in accordance with karmic truth yet has the privileged to side track self from the shadow of Maya that looms large at varying junctions of life
Pathway

A chapter of realization

Know it to reach the truth of Atman Tatva

Realization is a pillar and post to react at the subject

Through realization alone, one can make it to the difference between the truth that relates to self and the fellow beings

All beings on the ride of a journey either in animate or inanimate form is part of the almighty truth,

Indeed he presents all along with and all along within but at a distant

Every passing through the truth of Maya, a flux of passion

Every being has the knowledge of objects around that are perceivable through senses or the hidden mode

Even blind by nature can perceive the truth of truth within self

An object of senses that influences the spirit in its journey reaches it in varying ways,

Know it that some beings are blind by day and some blind by night and some maintain the same spirit of vision in dark as well as light

Indeed spirit too has its vision and skill to perceive sight when it runs even without a mortal frame

But true vision is not that light but the knowledge and true knowledge adds to the inner vision of spirit,

In Dreams man sees all without eyes so is a chapter with spirit to visualize the things without eyes and that vision never falls short either by short-sightedness or long-sightedness

It is not only humans that are endowed with knowledge to intercept truth at varying stages but most of the species have this skill they fail to qualify inner purity at many levels of that stage but man can sail through

Know it for sure, helplessness never let anyone go without its impact at varying stages of life

Cattle, birds animals and other-creature do have better sense perception skills but they mostly prove to be helpless at critical junctions

Eating and sleeping are common to all on the planet, state of sustenance and recharging mode differ hereafter for spirit in the journey,

Attachments are common to all beings, are a part of the journey but extra over truth unto it leads one to Karmic bondage

The flux of attachment and attraction is the truth of Maya which makes the existence of the world possible marvel for it,

Indeed two facets of Maya one may drag one to the bondage of karmic truth and the other may ascend one to the sovereign over















जय श्री राम